सिखावन (दोहा) Teaching (Doha)
का होंगे के रात हे घपटे हे अँधियार । आसा अउ बिसवास के चल तैं दीया बार।
एके अवगुन सौ गुन ल मिलखी मारत खाय। गुरतुर गुन वाला सुवा, लोभ करे फँद जाय।
मीठ-लबारी बोल के लबरा पाये मान । पन सतवंता ह सत्त बर हौसत तजे परान।
घाम छाँव के खेल तो, होवत रहिथे रोज एकर संसो छोड़ के रद्दा नावा तैं खोज।
लाखन लाखन रंग के फुलथे फूल मितान महर महर जे नइ करे, फूल अबिरथा जान
सब ला देथे फूल फर सब ला देथे छाँव। अइसन दानी पेड़ के, परो निहरके पाँव
तैं किताब के संग बद, गंगाबारू, मीत। एकरे बल म दुनिया ल पक्का लेबे जीत।
ठाडे – ठाड़े नइ मिले, ठिहा ठिकाना सार • समुद कोत नंदिया चले, दउड़त पल्ला मार।
हे उछाह मन म कहूँ, पाये बर कुछु ज्ञान। का मनखे ? चाँटी घलो, पाही गुरु के मान ।
अभ्यास
पाठ से
1. हमन ला चौंटी ले का-का सिखावन मिलथे ओरिया के लिखव
उत्तर-
2. ठाढ़े-ठाढ़े ठिहा-ठिकाना नइ मिलय-एमा कवि के भाव ल बने अरथा के लिखव ?
उत्तर-
3. काकर बल म ये दुनिया ल जीते जा सकत हे, अउ ‘दुनिया ल जीतना के का अर्थ है ?
उत्तर-
4. पेड़ ल दानी काबर कहे गे हवय ?
उत्तर-
5. घाम छाँव के खेल के अर्थ ल बने समझ के लिखव ?
उत्तर-
6. ‘रात’ अउ ‘अँधियार’ के अर्थ कवि के अनुसार का हो सकत हे ?
उत्तर-
7. ‘आसा अउ बिसवास के दिया बारना’ के भाव ल लिखव ।
उत्तर-